Sunday, 11 June 2017

साखी - कबीरदास

 1. साखी - कबीरदास

• प्रथम खंड में कबीर जी कहते हैं  कि उनके सामने गुरुवर और भगवान दोनों ही खड़े हैं, परंतु उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह किसे पहले प्रणाम करें |
अंत में कबीर जी कहते हैं हमें पहले गुरु को ही प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि गुरु ही तो है जो हमें भगवान की ओर जाने का रास्ता दिखाता है, और ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग दर्शन करता है |

• दितीय खंड में है उनके अंदर अहंकार भरा था तब भगवान नहीं था और अब भगवान है पर अहंकार नहीं है |
वह कहते हैं भगवान के पास जाने का रास्ता इतनी तंग है जहां अहंकार और भगवान दोनों एक साथ समा नहीं सकता I हम तबतक भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते जब तक हम अहंकार छोड़ ना दें |

• तृतीय खंडवे कबीर जी मुसलमानों के बारे में व्यंग करके कहते हैं की कंकर पत्थर जोड़ के इतने बड़े बड़े मस्जिद बनाते हैं और उसी मस्जिद में मुल्ला जोर-जोर से चिल्लाकरे बांग देता है, मानो ऐसा प्रतीत होता है कि उनका खुदा बेहरा हो गया है |

• चौथे खंड में कबीर जी हिंदुओं के मूर्ति पूजन के बारे में व्यंग करके कहते हैं कि अगर पत्थर को पूजने से भगवान प्राप्त हो सकता है, तो वह पहाड़ को पूजने का इच्छा प्रकट करते हैं |
वह कहते हैं कि इससे तो चक्की अच्छा है जिसका पीसा हुआ अन्य पूरा संसार खाता है | कहने का तात्पर्य यह है कि उसी वस्तु को हमें पूजना चाहिए जिससे मानव-मात्र का लाभ हो सके |

• पाचवा खंड में कवि कहते हैं की  यदि सातों समुद्रों को स्याही के रूप में, पेड़-पौधे को कलम कलम बना के और संपूर्ण धरती को कागज का रूप देख कर अगर हम हरि का गुण लिखने का प्रयास करें फिर भी वह लिखा नहीं जा सकेगा |
वह कहते हैं हरि का गुण असीम और अनंत है जो कभी लिखा नहीं जा सकता |

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